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01
एक संगठित, सुदृढ़, समावेशी, सुलभ एवं सार्थक पुरोहिती व्यवस्था की स्थापना करना जो पुरोहित (अर्चक, महाजन, ब्राह्मण व पंडित, भगत, महाजन, आचार्य, ओझा, गुरु ,ग्रंथी, जैन मुनि, बौद्ध भिक्षु ) प्रणाली को वांछनीय प्रतिष्ठा प्रदान करे। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें पुरोहित सर्वसुलभ हों, योग्य हों और सामाजिक व धार्मिक उन्नयन हेतु समर्पित हों तथा यजमान भी प्रशन्न रहे।
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समाज और पुरोहित वर्ग के बीच सतत् संवाद स्थापित करना और पुरोहितों, मंदिरों, पूजा सामग्री वितरकों, दान-दाताओं तथा पूजा कर्म से जुड़े सज्जनों व संस्थाओं की वृहद मंडली स्थापित करना। एक विश्वव्यापी संगठन स्थापित करना । तीर्थ पुरोहिती को भी सुसंगठित करना।
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इस वर्ग की भूमिका और क्षमताओ ं को बढ़ाने हेतु बहु-आयामी प्रयास करना।
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पुरोहित वृत्ति को आर्थिक रूप से जीविकोपार्जन योग्य बनाने का प्रयत्न करना। उन्हें कर्मकांड के अतिरिक्त सनातन धर्म ,योग, ध्यान, ज्योतिष, वास्तुशास्त्र, कथा वाचन आदि का भी प्रशिक्षण देना ।
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इस क्षेत्र में देश-विदेश की रिक्तियों को भरने हेतु पुरोहितों को प्रशिक्षित करना तथा रिक्तियों वाली संस्थाओं व पुरोहितों के बीच एक कड़ी की भांति कार्य करना।
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पुरोहित, पुजारियों एवं प्रक्षिशु पुरोहितों के लिए प्रशिक्षण संस्थान स्थापना करना जिससे कि गुरु-शिष्य परंपरा के लोप से जनित क्षति की पूर्ति हो सके। इन संस्थानों को सभा-संगठन हेतु भी एक सुव्यवस्थित माध्यम बनाना।
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महिलाओं को पुरोहिती व पूजा क र्म हेतु प्रशिक्षत करना।
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पुरोहित वृत्ति को समावेशी बनाना और वंचित जातियों को इस वृत्ति से जोड़ने का प्रयत्न करना।
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पुरोहित्य व्यवस्था को मानकीकृत और प्रासंगिक बनाने के लिए ‘पुरोहित शोध संस्थान’ स्थापित करना जो वैदिक संस्कार, कर्मकाण्ड, पूजा विधि, आरती आदि को और अधिक प्रासंगिक तथा समसामयिक बनाने जैसे विषयों पर अनुसंधान करेगा।
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‘संस्कृति कक्षायें’ प्रारम्भ करना जो बच्चों को धर्म से जोड़ेंगी। विभिन्न क्षेत्रों में प्रातः 7 बजे से 8. 30 के बीच प्रत्येक रविवार को ऐसी कक्षायें आयोजित की जाएगी। यह सब जन-सामान्य की पहल के माध्यम से किया जाएगा। पाठ्यक्रम और अन्य विवरण संघ द्वारा प्रदान किया जाएगा।
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हिन्दू पुरोहित संघ में अधिक से अधिक पुरोहितों को रजिस्टर करना ।
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पुरोहित संघ के संस्करण वाली पुस्तक श्रृंखला निकालना तथा पत्रिकाएँ निकलना । बाद के कतिपय शास्त्रों में कुछ जातियों और महिलाओं के लिए नकारात्मक संदर्भों को हटाना। ये वैदिक दर्शन के विरुद्ध हैं और प्रक्षिप्त हैं। पुरोहित संघ के संस्करण वाली एक पुस्तक श्रृंखला और पत्रिका निकालना।
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कथा, यज्ञ, रामलीला आदि को प्रोत्साहन देना तथा मंदिरों को मनभावन स्थल बनाने हेतु एक धुरी की भांति कार्य करने हेतु प्रेरित करना । सेवा, स्वास्थ्य आदि जनहित कार्यों से मंदिरों को जोड़ना ।
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पुराहितों का अखिल भारतीय सम ्मेलन तथा शिविर आयोजित करना जिसमें विभिन्न विषयों पर वार्तालाप हो सके।
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हिन्दुओं के बीच समन्वय और कुटुम्ब भावना विकसित करने के लिए ‘संध्या सत्संग मिलन’, ‘महा आरती’ व ‘सामुदायिक पूजा’ कार्यक्रम प्रारम्भ करना। ऐसे सत्संग व मिलन सामुदायिक केन्द्र, पार्क, मन्दिरों, ऑडिटोरिम, नदी किनारों या अन्य किसी शान्त स्थान में आयोजित किये जाएंगे।
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उपरोक्त हेतु 'पुरोहित दान कोष' स्थापित करना ।




