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पुरोहित सनातन धर्म के प्रति अटूट श्रद्धा रखें। धर्माचरण करें। यम-नियम का पालन करते हुए एक अनुशासित जीवन जिएं। यजमानों के लिए एक आदर्श बनें तथा मर्यादित रहें। नित्य ब्रह्म मुहूर्त में जागकर स्नानादि  नित्यकर्म से निवृत्त होकर विहार , योग-प्राणायाम करें। इसके उपरान्त संध्या एवं गायत्री जप करें जो पुरोहित के लिए अनिवार्य है। पुरोहित के लिए शिखा, तिलक, यज्ञोपवीत भी अनिवार्य है। मंत्रोच्चार के समय मुख स्वच्छ हो, कुछ खा न रहे हों। उनमें कोई व्यसन न हो तथा मद्यपान  वर्जित है। शाकाहारी भोजन करें। शास्त्र बताते हैं कि उपरोक्त गुणों से कोई भी व्यक्ति ब्राह्मण बन जाता है। सत्संग व स्वाध्याय भी पुरोहित के जीवन का अंग हैं। वे ऊँच-नींच का भेदभाव किये बिना सभी के घर पूजा कर्म करने को तत्पर रहें।

कर्मकांड वैदिक संस्कृति की देन है। कर्मकांड भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नयन का मार्ग है। वेदों के तीन मुख्य विषय  हैं: कर्मकांड, ज्ञानकांड और भक्तिकांड, । जीवन के विभिन्न चरणों को  कैसे जिया जाए यही कर्मकांड बताता है। यह जीने की कला है। जिससे कि लोक और परलोक सुधर जाए। इसमें उपासना,  यज्ञ सामाजिक जीवन, सांस्कृतिक जीवन आचरण आदि सभी कुछ आता है ।

पुरोहित सामाजिक उत्थान के सर्वाधिक सशक्त माध्यम हैं । वे जिन परिवारों में पूजा पाठ हेतु जाएं, उन्हें नशा मुक्त करने का प्रयत्न करें। सनातन धर्म के प्रतीकों, मठ–मंदिर का संरक्षण करें और वैदिक सतमार्ग का अनुसरण करें। संत  व पुरोहितों का सम्मान हो ऐसा संदेश दें। सभी संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त करें। कोई कन्वर्जन नहीं करेगा ऐसा सुनिश्चित करें। सभी धर्म का आचरण करेंगे। बच्चों के चरित्र निर्माण में विशेष ध्यान दें। जन जन  में हिंदू धर्म की जागृति लाएं। सभी पारिवारिक मूल्यों का निर्वाह करेंगे। महिलाओं का सम्मान करें। हिंदू जन आपस में एक दूसरे की सहायता करें। वंचितों को मुख्य धारा में जोड़ें। पुरोहित जन यजमानों को गीता, रामायण, पुराण , महाभारत आदि के आख्यान सुनाएं, तथा नीति वचन सुनाएं।

पुरोहित को चाहिए कि जिस दिन यजमान के घर में कोई कर्म है उससे पहले दिन से ही शुद्धि रखें। सात्विक भोजन करें तथा कर्म के दिन यथासंभव फलाहार करें।  किन्तु लंबे समय तक भूखे न रहें । पुरोहित कर्म के समय  श्वेत, पीत  या गुलाबी वस्त्र ही पहनें, भगवा नहीं। पुरोहित चमड़े के सामान का  उपयोग न करें। कर्म करते समय, धोती, सिर पर श्वेत टोपी या पगड़ी पहनें तथा अंगवस्त्र धारण करें।

कर्म व संस्कार अत्यन्त गूढ़ दर्शन पर आधारित हैं। ये वेद शास्त्र और  ऋषि-मुनियों की देन है अतः इन्हें गंभीरता से लें।

पुरोहितों में यजमान के कल्याण की भावना बनी रहे। यजमान  से उचित सम्मान प्राप्त न होने पर भी आशीर्वाद देने  में कोई कृपणता न हो । यजमान को वेद शास्त्रों के ज्ञान से परिचित कराते रहें तथा उन्हें सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित करें। पुरोहित अपने यजमान की आर्थिक स्थिति को देखते हुए पूजा सामग्री की सूची बनाएं । निर्धन यजमान के लिए सीमित सामग्री से भी  काम चलाना पड़ सकता है ।

ज्ञातव्य है कि सनातन धर्म ऋषि मुनियों की परंपरा का निर्वाह करता है, पुरोहित सतत अपना ज्ञान वर्धन करें। संस्कृत सीखें  तथा वैदिक पंडितों, संतों, महापुरुषों आदि से संपर्क जोड़ें तथा शास्त्रों का पाठन व श्रवण करें। शुद्ध मंत्रोच्चारण सीखें । विधि विधान का ज्ञान प्राप्त करें । शास्त्र यह भी बताते हैं की हमें देश, काल व परिस्थिति अनुसार चलना है । शास्त्र में आपद धर्म का प्रावधान भी है ।

हिन्दू पुरोहित संघ से जुड़ा कोई भी पुरोहित व पुजारी कर्म करने के लिए धनराशि, फीस आदि नहीं मांगेगा । वे पूर्णतः पारंपरिक स्वैच्छिक दान दक्षिणा की मर्यादा का वहन करेंगे। ज्ञातव्य है कि शास्त्रों में दैवीय कर्मों हेतु धन वसूलना पाप माना गया है किन्तु दान-दक्षिणा लेने का पुरोहित अधिकार रखते हैं। पुरोहितों को संध्या व गायत्री मंत्र जप करना चाहिए जिससे दान-दक्षिणा लेने के कारण उसके पुण्य कर्मों का क्षय नहीं होता ।

महिलाओं के प्रति अपार सम्मान हो। उन्हें मातृ व पुत्रीवत देखें - मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत । किसी को भी नारी का अपमान, उनके प्रति अपशब्द, पुरुष प्रधान मानसिकता वाली भाषा का प्रयोग न करने दें । महिला सदैव पूजनीय है। कोई भी कर्म पत्नी के बिना अधूरा है। गृहस्थ हेतु दाम्पत्य एक दूसरे के पूरक हैं। कर्म करते समय बच्चों को अग्रिम पंक्ति में बैठाएं तथा साधु-संत-संन्यासी, महापुरुषों व वृद्धजनों हेतु  सम्मान पूर्वक बैठने की व्यवस्था हो, उन्हें माल्यार्पण , शाल या पुष्प आदि प्रदान हो तथा भोजन हेतु सर्वप्रथम उन्हें स्थान मिले। तत्पश्चात  बच्चों व महिलाओं और अन्त में अन्य सभी को। रुग्ण व दिव्यांग जनों को सर्वाधिक महत्व मिले। बच्चों को कर्म का महत्व समझाएं, उनकी जिज्ञासा का समाधान करें ।

यह सुनिश्चित हो कि कर्म में कोई विघ्न-बाधा, अग्नि कांड आदि दुर्घटना न हो। सभी को चेताएं। सुविधाओं का भी निरीक्षण करें ।

शास्त्रों का वचन है की हम  जनता  में भय नहीं अपितु विवेक व संस्कार जगाएं । उनमें परमार्थ, पुरुषार्थ भाव तथा अनुशासन उत्पन्न करें । उनमें अपने शरीर व स्वास्थ्य की देख-रेख तथा समाज के प्रति संवेदना उत्पन्न करें। समाज के वयस्क, वृद्ध, असहाय, निर्धन, अकेले पन से जूझ रहे लोगों एवं पशु-पक्षियों आदि जीवों के प्रति संवेदना उत्पन्न करें तथा सेवा, शुश्रुवा  हेतु प्रेरित करें।  हिन्दू धर्म को दहेज के कैंसर से बचाना है । युवाओं को  ऊॅच- नीच तथा कुरीतियों के विरूद्ध उद्वेलित करें तथा उनमें समता का भाव जगायें।  उनमें करुणा, पुरुषार्थ की चेतना, सदाचार, निष्कपटता, राष्ट्र भक्ति, अंदर-बाहर संयम, नियमबद्धता, मंदिर व सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा, स्वास्थ्य, योग, क्रीड़ा, शास्त्र ज्ञान, स्वच्छता, शालीन व्यवहार, माता-पिता, परिवार व समाज के प्रति उत्तरदायित्व का संस्कार लाए। आज सारा विश्व पर्यावरण व जल संकट, गरीबी व सामाजिक विषमता तथा आतंकवाद से पीड़ित है। इनसे उबरने में पुरोहित  सहायक बनें। जनता को गुटखा, तम्बाकू, नशे के बढ़ते प्रकोप से बचाएं। गुरु युवाओं को सन्मार्ग में लाना अपना लक्ष्य बनाएं  क्योंकि वे मार्ग ढूंढ़ रहे होते हैं और उनमें भटक जाने की संभावना सर्वाधिक होती हैं। प्रजा  में वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करें, सनातन धर्म वैज्ञानिकता पर बल देता है. । उनमें महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना उत्पन्न करें। उन्हें अर्जुन, कर्ण, अश्वत्थामा, विक्रमादित्य, ललितादित्य,  चाणक्य, द्रोणाचार्य, अशोक, शिवाजी, गुरु गोबिन्द सिंह, रानी लक्ष्मी बाई, दुर्गावती अहिल्यावाई, चनम्मा, बप्पा रावल, कृष्णदेव राय, महाराणा प्रताप, महाराणा रणजीतसिंह व पेशवा बाजीराव आदि वीरों की गाथाएं  सुनाएं और उनमें क्षात्र धर्म विकसित करें।  आम जनता को संत या ब्राह्मण के लक्षणों से न लादें, उत्कर्ष पुरोहितों के नेतृत्व से क्षात्र व गृहस्थ द्वारा ही प्रारंभ होता है। नागरिकों  को, स्वयं अपनी तथा दूसरों को निर्धनता से निकलकर ऐश्वर्य प्राप्ति का मार्ग दिखाएं।  वैदिक ज्ञान का संचार करें, वाहक बनें। धर्म ध्वज लहराएं। कन्वर्सन के विचार का प्रतिकार करें। सनातन धर्म प्रचार करें , यही  सुमार्ग  है। लोगों का सच से सामना करायें, उन्हें कल्पनाओं के संसार में न भटकायें। कर्मकांड व् संस्कार में  देश- काल का विचार करें।

पुरोहितों हेतु कुछ  प्रमुख पुस्तकें :-

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित:

  • नित्यकर्म पूजा प्रकाश

  • स्त्रोत्र रत्नावली

  • श्री दुर्गा सप्तशती

शास्त्री प्रकाशन प्रयाग की:

  • रुद्राष्टाध्यायी (श्रीधर शास्त्री)

  • हवन विधि

  • गृह प्रवेश पद्धति

  • उपनयन संस्कार

  • विवाह संस्कार विधि

हीरा बल्लभ जोशी की :

अन्य :

  • गणेश आपा पंचांग,

  • पूजा कर्म प्रवेशिका

  • सनातन संस्कार विधि( गंगा प्रसाद शास्त्री)

  • सर्वकर्म अनुष्ठान पद्धति (डी पी पी प्रकाशन)

  • हवन पद्धति (श्री राम स्वरूप, सुतिम प्रकाशन)

  • संस्कार विधि— स्वामी दयानंद सरस्वती (आर्य समाजी पद्धति).

  • वैदिक उपासना प्रदीप(डॉक्टर बलदेव आचार्य)—आर्य समाजी पद्धति।

  • यू ट्यूब में कर्मकांड, संस्कार नीति शास्त्र आदि में उपलब्ध वीडियो भी देखें ( जगतगुरु शंकराचार्य महोदय, राघवाचार्य, जगतगुरु रामभद्रचर्या, आचार्य अभिराम शास्त्री , आदि )

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