-: यजमान के कर्तव्य :-
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सनातन धर्म का आचरण करें तथा अन्य जनों व अपने बच्चों में ये संस्कार डालें। यजमान का कर्तव्य है कि पूरी श्रद्धा से कर्म व संस्कारों का निर्वाह करें, ये आपके जीवन में सुख समृद्धि लाएंगे । कुछ कर्म व संस्कार तो अनिवार्य हैं अतः उनका लोप कदापि न हो। कर्म के दिन वे सात्विक जीवन निर्वाह करें। घर को सजाएं,रंगोली आदि बनायें और पारस्परिक रंगीन वस्त्र पहनें । आडम्बर से दूर रहें। कर्मकांड वस्तुतः पारिवारिक समारोह हैं और ये परिवार को जोड़ने का कार्य भी करती हैं तथा सद्बुद्धि लाते हैं । पुरोहित दान-दक्षिणा पाने के श्रेष्ठतम पात्र हैं । यजमान व पुरोहित एक वृहत परिवार के अंग हैं।
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पुरोहित को गृहस्थ जन सहर्ष यथाशक्ति दान-दक्षिणा दें ।कटौती आप अन्यत्र करें उसके हिस्से में नहीं. जिससे कि उनकी जीविका चल सके और उनके परिवार का भरण-पोषण हो सके। पुरोहित वृत्ति बनी रहे और यह अगली पीढ़ी को पुरोहिती की ओर आकर्षित कर सके। पुरोहित के लिए सम्मान सर्वोपरि है। पुरोहित महान वैदिक संस्कृति के वाहक हैं। पुरोहितों एवं उनके कार्य का उपहास कदापि सहन न करें। दान –दक्षिणा पुरोहित के सम्मान का सूचक है जिसे पुरोहित के पांव छूने के पश्चात उन्हें दिया जाता है। दक्षिणा दिहाड़ी नहीं है। दक्षिणा आपके पाप कर्मों का नाश करती है।
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ऑनलाइन विडिओ कॉन्फ़्रेंसिंग या रिकॉर्डिंग से पूजा कदापि न करें। पूजा में पुरोहित की सशरीर उपस्थिति अनिवार्य है।
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पुरोहित वेद व्यास की गद्दी पर बैठने का अधिकार रखते हैं। यह व्यास पीठ कहलाती है तथा श्रेष्ठ स्थान है। गृहस्थ पुरोहित व्यास गद्दी में बैठने का उत्तम पात्र है और ब्रह्मचारी भी इसमें बैठ सकते हैं किन्तु संन्यासी नहीं।
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यजमान तांत्रिक नहीं अपितु वेद मन्त्रों वाली सात्विक पूजा पाठ अपनायें । पुरोहित की योग्यता की जानकारी लें । कोई पुरोहित सब कर्म कर पाए यह संभव नहीं है । जहाँ भागवत कथा वाचन हेतु वेद व् संस्कृत का प्रकांड विद्वान चाहिए वहीं सत्य नारायण कथा कोई भी करवा सकता है. संस्कारों में उपनयन तथा विवाह संस्कार भी थोड़ा जटिल होता है अतः यथासंभव ‘पुरोहित संघ’ के माध्यम से पुरोहित को चुनें,हमारे पास अपने पुरोहितों की योग्यता का विवरण उपलब्ध है ।
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यजमान मंदिर और तीर्थ की मर्यादा बनाये रखें - अन्य क्षेत्रे कृतं पापं, तीर्थ क्षेत्रे विनश्यति |
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तीर्थक्षेत्रे कृतं पापं, वज्रलेपो भविष्यति | (अन्य क्षेत्र में किया गया पाप तीर्थ व मंदिर जी में जाकर नष्ट हो जाते हैं परंतु जान बूझ कर मंदिर में किया गया पाप बज्र की लेप जैसा चिपक जाता है।)




